नई दिल्ली - विश्व महिला दिवस जैसे आयोजनों एवं दिवसों की उपयोगिता और सार्थकता तभी है जब नारी की कोरी तस्वीर बदलने की ही कोशिश न हो बल्कि तकदीर बदलने की दिशा में गति हो। इस दिवस के सन्दर्भ में एक टीस से मन में उठती है कि आखिर नारी का जीवन कब तक खतरों से घिरा रहेगा। बलात्कार, छेड़खानी, भू्रण हत्या और दहेज की धधकती आग में वह कब तक भस्म होती रहेगी? कब तक उसके अस्तित्व एवं अस्मिता को नौचा जाता रहेगा? कब तक खाप पंचायतें नारी को दोयम दर्जा का मानते हुए तरह-तरह के फरमान जारी करती रहेगी?