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मिसेज होली!

Updated on Sunday, March 16, 2014 20:22 PM IST

विजय कुमार - झाजी के बंगले के अहाते में आज बड़ी गहमागहमी थी। महिलाओं की भीड़ जुटी हुई थी। यहां महिलाओं की भीड़ का अभिप्राय देश की महिलाओं की पूरी जमात से नहीं है, बल्कि कहने का मतलब यह है कि कालोनी की महिलाओं की पूरी जमात आई हुई थी। वैसे समझ लीजिए, जहां सिर्फ दस महिलाएं भी जुटी हों तो वे पूरे देश की महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती ही दिखती हैं। कुछ ऐसा ही दृश्य ओझा जी के बंगले में भी था।

                महिलाएं ‘कैसे मनाएं होली’ विषय पर आयोजित गोष्ठी में जमा हुई थीं। यह विचार विमर्श चल रहा था कि होली के सामूहिक आयोजन की रूपरेखा कैसे तैयार हो और उसके कार्यान्वयन के लिए क्या कदम उठाए जाएं?

                पूरा अहाता खचाखच भर गया था। पर अभी भी सजी धजी महिलाओं का आना बदस्तूर जारी था। यही देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे देश की महिलाएं किसी मामूली विषय के प्रति भी कितनी जागरूक हैं।

                फिर भी ऐसा लग रहा था कि गोष्ठी में विषय से कहीं ज्यादा कपड़ों व ज्वेलरी का सेलेक्शन करना उनका मुख्य उद्देश्य था। उन्हें इस बात का इल्म था कि वे गोष्ठी में जा रही हैं, वहां पचास महिलाएं जुटेंगी, प्रदर्शन का इससे सुनहरा अवसर और क्या हो सकता था? गाड़ियों, गहनों, कपड़ों, स्प्रे और सौंदर्य सामग्रियों के बहेतर प्रदर्शन की प्लेटफार्म बन चुकी इस गोष्ठी में मूल विषय कहीं नहीं दिख रहा था।

                वहां केवल शोर शराबा हो रहा था। सारा शोर तो तब थमा, जब ओझा जी के दोनों खतरनाक कुत्ते एक साथ भौंक पड़े।

                तब मिसेज ओझा ने हंसते हुए कहा, ‘‘आप लोग हमारे ‘डागीज’ का बुरा मत मानिए। दसअसल इन्होंने हमारे पति से गुस्सा करना सीखा है। जब मैं बहुत बोलती हूं तो मेरे पति इसी तरह से बिगड़ पड़ते हैं। उनका ही अनुसरण करते हुए मेरे ‘डागीज’ आप लोगों के हल्ले गुल्ले से नाराज होकर भौंक रहे हैं।’’

                ‘‘जत्तू, जा, इनको दूसरे पोर्टिकों के पास बांध आ।’’ ओझा जी की बीवी ने जत्तू को आदेश दिया और महिलाओं की तरफ मुखातिब हुईं।

                ‘‘अब बोलिए, क्या मंगाऊं आप सबके लिए?’’ भारी भरकम डील डौल वाली थीं मिसेज ओझा। उस पर लटकते हुए झुमके और उनके ठुमके। सब लकदक। क्या कहना था।

                ‘‘अरे, रहने दीजिए। अभी तो बादाम का शरबत पीकर चली हूं’’, ऐसे अवसरों पर इस तरह बोलने से मिसेज बंसल भला क्यों चूकतीं?

                ‘‘वहीं तो, मैंने भी सेब का जूस आधा गिलास ही पिया, आधा गमले में फेंककर आ रही हं।’ मिसेज धवन ने भी तुर्रा फेंका।

                ‘‘ओह, एनी वे... आप बाकी सब लोग तो कुछ लेंगी?’’ मिसेज ओझा बाकी महिलाओं की ओर मुखातिब होती हुई बोलीं।

                ‘‘अरे, आप परेशान क्यों होती हैं? हम सब किसी न किसी कारण से डाइटिंग पर चल रही हैं। हमने तो बादाम का शरबत और मेवों का हलवा खाना कब का छोड़ दिया, सुन मिसेज बंसल तुनक गईं।

                ‘‘छोड़ो, छोड़ो। बादाम का शरबत कभी पीया हो तो इतनी लंबी-लंबी छोड़ो?’’ उनके इस गरम तेवर को देखकर सारी महिलाएं सकते में आ गईं।

                तभी मिसेज ओझा का स्वर सुनाई दिया, ‘‘रहने दीजिए, शांत रहिए। आप सबके लिए ठंडा पानी मंगवाती हूं।’’

                ‘‘ठंडा पानी?’’ सबके मुंह से इस तरह चीख निकली मानो उन पर घड़ों भर ठंडा पानी गिर पड़ा हो। बहुत सी महिलाओं के कुछ खाने पीने की उम्मीद पर भी पानी पड़ गया था।

                ‘‘ठंडा पानी आ गया।’’ जत्तू ने टेª लेकर घूमते हुए कहना शुरू किया। सबने मुंह बिचकाते हुए अनमने ढंग से गिलास तो उठाया पर यह कहते न बना कि हम तो कोल्ड ड्रिंक की उम्मीद लगाए बैठी थीं। वे यह भी नहीं कह सकती थीं कि अभी-अभी पानी  पीकर ही आए हैं। ऐसा कहकर तो उनके स्टेटस पर आंच आ जाती है। हालांकि कल महानगरों में पानी की किल्लत यदि पानी को स्टेटस सिंबल बना दे, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं।

                पानी पीकर महिलाएं कुछ शांत हुईं तो मिसेज ओझा ने कहा, ‘‘डियर फ्रेंड्स, आज हम सब यहां किसलिए जमा हुई हैं, यह तो आप सबको पता ही है?’’

                ‘‘अजी, बिलकुल पता है’, महिलाओं का समवेत स्वर आया।

                ‘‘किसलिए? बताइए?’’ मिसेज ओझा बोलीं।

                सारी महिलाएं खामोश रहीं।

                ‘‘होली के लिए फ्रेंड्स।’’

                मिसेज ओझा मुस्कराकर बोलीं, ‘‘आज हम यहां इसलिए जमा हुई हैं ताकि यह तय कर सकें कि होली कैसे मनाएं?’’

                ‘‘रंगों से।’’ महिलाओं के बीच से एक की आवाज आई।

                ‘‘जरूर।’’ मिसेज ओझा बोलीं, ‘‘पर केवल रंगों से नहीं दिल से दिल मिलाकर, यानी सामूहिक होली कैसे मनाई जाए, यह भी तय करना है।’’

                ‘‘गुड आइडिया।’’ मिसेज सिंघल बोलीं, ‘‘वैसे ही जैसे कभी राज कपूर, सुभाष घई और बिग बी मनाते रहे हैं और आजकल लालू...’’

                ‘‘बिलकुल।’’ मिसेज राघवन ने कहा, ‘‘मगर हमारी सामूहिक होली का स्वरूप थोड़ा अलग होगा। इसमें होने वाला खर्च, वेन्यू सब सामूहिक सहमति और सहयोग से होगा।’’ मिसेज राघवन ने जिस गंभीरता से बातें कहीं, उससे महिलाएं उनके और करीब आ गईं।

                ‘‘हम सब इस होली पर एक साथ जमा होकर न सिर्फ होली मनाएंगे, बल्कि उसका आयोजन भी मिलजुल कर करेंगे। अब आप सब यह बताइए कि होली का आयोजन किसके घर पर हो?’’

                ‘‘मेरा तो बड़ा महंगा घर है, वह भी एकदम नया बना है। होली में बहुत गंदा हो जाएगा।’’ वह कहकर मिसेज बंसल ने किनारा कर लिया।

                ‘‘मेरे घर में तो लान ही नहीं है।’’ एक ने इनकार करते हुए कहा तो दूसरी बोली, ‘‘मैं तो फ्लैट में रहती हूं। वहां न धरती अपनी, न आकाश अपना।’’ इस पर किसी ने कहा, ‘‘हमारी पांच कारें हैं। आगे का पूरा लान तो उसी से भर जाता है।’’ जितनी तरह की महिलाएं, उतने ही बहाने। कोई भी सामूहिक होली के लिए अपने घर को बलिदान करने के लिए तैयार नहीं था।

                ‘‘ठीक है, ठीक है।’’ मिसेज ओझा बोलीं, ‘‘मेरा लान तो बड़ा भी है और खाली भी है। जैसे आज हम सब जमा हुए हैं, वैसे ही होली का आयोजन भी हो जाएगा।’’

                ‘‘रंग, टेंट हाउस, गाने बजाने और खाने पीने के खर्च का भी तो निर्णय लेना है’’, मिसेज राघवन ने कहा।              

                ‘‘मैं तो न रंग लगाऊंगी और न लगवाऊंगी। मेरा चेहरा खराब हो जाएगा और मुझे बहुत अफसोस होगा।’’ एक के कहने पर दूसरी महिला ने छूटते ही कहा, ‘‘मुझे तो रंगों से एलर्जी है।’’ किसी ने कहा, ‘‘मैं तो डाइटिंग पर हूं।’’ कोई और बोली, ‘‘उस रोज तो केवल रेसिपीज सुनकर ही मेरा जी भर जाता है।’’

                फिर वही बात। जितनी तरह की महिलाएं, उतनेे ही बहाने गढ़े हुए सुनने को मिले।

                ‘‘ठीक है, ठीक है। यह भी कैंसिल। यह सब मैं संभाल लूंगी। होली के लिए जगह भी मेरी और खर्च भी मेरा। अब तो नो प्राब्लम?’’ मिसेज ओझा नाराजगी भरे स्वर में बोलीं।

                ‘‘नहीं, नहीं, ऐसी बात नहीं मिसेज ओझा’’, नाराजगी तोड़कर चहकती हुई बोलीं मिसेज बंसल, ‘‘मैं एक हजार रुपये दूंगी रंगों के लिए।’’

                ‘‘हां।’’ मिसेज चटर्जी बोलीं, ‘‘इतनी मामूली रकम में रंगों का निपटारा हो जाना चाहिए। और खाने पीने की चीजों के लिए पंद्रह बीस हजार, कहो तो मैं अभी चेक काट देती हूं।’’

                ‘‘रहने दो, बड़ी आई चेक काटने वाली, ‘‘मिसेट घई कहां चूकने वाली थीं, ‘‘मैं तो सिर्फ फूलों के लिए हजार दे दूंगी।’’

                मिसेज आहूजा ने कहा, ‘‘मेरी ओर से क्राकरी के लिए 3 हजार।’’

                शर्मा जी की बीवी बोलीं, ‘‘मुझसे टेंट हाउस के लिए जितने चाहो, ले लो।’’

                किसी ने कहा, ‘‘किसी और खर्च की जरूरत हो तो कहना दस हजार चुटकी बजाते दे दूंगी।’’

                इतना ज्यादा शोर शराबा। हजारों हजार की बातें। अपने को बड़ा और दूसरे को नीचा दिखाने की पुरजोर कोशिश में तनती भवें, भिंचती मुट्ठियां। पिसते दांत... आलम कुछ ऐसा, मानो दिल से नहीं, बल्कि पैसों से खेलनी हो होली। प्यार की जगह अहंकार, स्टेटस और अंडर एस्टीमेट करने की भावना प्रबल हो गई।

                तभी मिसेज ओझा के ‘डागीज’ एक साथ भौंक पड़े। महिलाएं एक बारगी तो शांत हो गईं। तब महिला मित्रों को बुझे दिल से विदा करने की मुद्रा में मिसेज ओझा बोलीं, ‘‘आप सबका गोष्ठी में आने का शुक्रिया। लेकिन अफसोस कि हमने सामूहिक होली का अवसर खो दिया। हम सब होली अपने-अपने घरों में ही मनाएं, यही अच्छा होगा।’’

                सभी महिलाओं ने सहमति में यों सिर हिलाया मानो वे पहले से ही सहमत हों।

                जल्दी ही सबकी कारंे स्टार्ट होने लगीं। गहनों और आडंबरी शान की गोष्ठी खत्म हो चुकी थी।

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