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भगत सिंह , राजगुरू ,चन्द्रशेखर कौन किस को याद है - देवेन्द्र गुप्ता

Updated on Friday, March 21, 2014 15:07 PM IST

जब कि आज स्टार डम ने उन चेहरों को ही उपेक्षित कर दिया जिन्होंने हमें अगेंरजों से तो आजाद करवा दिया पर मानसिकता से अभी भी हम अगेंरजियत में जी रहे हैं। आजादी के दीवानगी में किसी औरत का प्रेम था तो वह था देश प्रेम भारत मां के प्रति ‘‘तभी तो गूंजता था मेरा रंग दे बसंती चोला, माये रंग दे’’। ये नही कि आज इस गीत को गाने वाले नहीं है गौर से देखों सरहदों पर अपनी जान कुर्बान करने वालों शहीदों की शहादतों में रोती हुई मांओं को देखकर सच्च लगता है पर उसके बदले में लाखें रूपये का मुआवा देकर सरकारें अपनी फर्ज पूरा कर चुकी है। सच्च की तस्वीर ये भी है कि आज उन आजादी के दीवानों की शहादत पर भारत का कोई राजनीति दल आवाज बुलन्द नहीं कर पाया, ठीक उसी तरह भगत िसंह ने असैम्बली हाल में बम्ब फैंकने के बाद कहा था बहरे को सुनाने के लिए जोर के धमाके की जरूरत होती है, देश आजाद हो गया और फिर गांधी के मरने के बाद उनके आदर्शवाद को बुतों को चैराहे में लगाकर देश की मुद्रा में छापकर ये दर्शाने की कोशिश करने की गई कि गांधी के अहिंसावाद से देश आजाद हुआ, परन्तु ये किसी ने नहीं सोचा कि शहीदो की शहादत और आजाद हिंद फौज की ताकत से अगें्रज भी अन्तरमन से हार चुके थे। गांधी के नरमवाद के पीछे काग्रेंस की लोलुप्ता ही रही यही वजह है कि आजादी के बाद महात्मा गांधी ने खुद कागे्रंस को समाप्त करने की घोषणा की थी परन्तु देश का सता सुख भोगने नाम पर नेहरू ने दबाब की राजनीति बनाकर देश के टुकड़े करवा दिये। पर आज तक सुभाषचंद्र के लापता होने औेर आजादी के वीर सपुतों की शहादत का सही मान देने में सरकारे असफल ही रही। उनका इतिहास पढ़ाने में हिचकिचाहट  रहती है कहीं देश सच्च के बारे में पूछने न लग जाये इसलिए शिक्षा की किताबों से आजादी के ये परवाने गायब होते जा रहे है। मै जब  पिछली  बार अमृतसर के जलियांवाला गया था तो जनरल डायर की फौज की गोलियों के निशान देखकर मेरी आंखे भर आई कि देश के लिए कुर्बान होने के क्या मायने होते है। पर सुकुन ये भी हुआ कि आज भी अमृतसर में इनका इतिहास सच्च के साथ जिन्दा है। गर्व की बात है कि उस वक्त भारत ही नहीं विदेशी मीडिया ने भी इस नरंसहार की निन्दा की थी। आज भी भगत सिंह के जज्बे के लोग है परन्तु वे हार चुके है राजनीति में भाई भतीजावाद, चाटुकारिता, अवसरवादीता और परिवारवाद ने ऐसी पटटी बांध दी है कि जनता भी उसे ही अपना मानकर अपना शोषण करवा रही है। जरूरत है आजादी के ही इतिहास के मुल्यांकन की ताकि सच्च को पढ़ा और समझा जा सके। वर्ना यही चलता रहा तो देश के ये वीर सपुत लुप्त इतिहास की श्रेणी में न आ जायें। इसलिए ये काम केवल सरकार का नही बल्कि हर भारतीय का भी है कि हम अपने शहीदों की शहादत का सही और सच्च हक अदा करे देश की निःस्वार्थ सेवा करके। इसलिए तो शौक जज्वाती ने कहा है

     वे तो शहादत दे के गुजर गये,

     अब तेरा मौका ऐ शौक कि तुझ में कितनी वतन परस्ती है।

(लेख में व्यक्त किये विचार लेखक के निजी हैं जिनसे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं हैं)

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