चंडीगढ़ - आज विदेशी धरती अमेरिका, रूस, जर्मनी में जिनेटिकली लूसीफेरेन (प्रकाश उत्सर्जक) पेङ -पौधों का तेजी से विकास पर वैज्ञानिक कार्य चल रहा है, यह रातों में सङकों पर, पार्कों में भगजोगनी-खद्योत समान स्ट्रीट लाईट का काम करते हैं और दिन में प्राकृतिक सौंदर्य की छटा बिखेरते, छाया का विस्तार करते हैं, धूल-कण, शोर प्रदूषण, ग्रीन हाऊस तथा अन्यान्य रासायनिक विषैली गैसों का शोषण कर धरा को प्रदूषण रहित बनाते, ऑक्सीजन-शुद्ध वायु प्रदान करते हैं.
इस पर भारत देश में भी कार्य हो, पेङ -पौधों पर बैक्टिरियल कीट जङित, रेशम कीट के समकक्ष खद्योत समान मौथ (मॉथ) को टिशू कल्चर की प्रक्रिया से बायोलूमिसेंट पेङ-पौधे उगाए जा सकते हैं. आज देश के कृषि और बोटॉनिकल क्षेत्र से जुङे वैज्ञानिकों को इस क्षेत्र में काम करना चाहिए, इसे सरकार के नए एंटरप्रोनियोर प्रोग्राम से जोङा जाए, इससे देश को नई दिशा और बल मिलेगा. जंगली पेङ-पौधों और वन क्षेत्र के विकास से नए व्यवसाय-रोजगार का सृजन होगा.हरित क्रांति, पर्यावरण, वर्षा क्षेत्र, जल संरक्षण, जल-भराव, मैं -ग्रोव और औषधीय पौधों का विस्तार होगा. इससे एक अलग सौ टके की बात जीव विविधता, फ्लोरा-फौना, वनस्पति तथा प्राणी जगत को विस्तार मिलेगा.
डा.बासुदेव प्रसाद, सेवानिवृत पर्यावरण वैज्ञानिक, सी.एस.आई.आर.ओ. चंडीगढ़