खालसा सजना दिवस के अवसर पर बेल्जियम स्थित इनफ्लेंडर्स फील्ड म्यूजियम और सेक्टर 34 गुरुद्वारा में याद किये जायेंगे शहीद
भुलायें न जाये वो शहीद जिन्होंनें विश्व की राजनैतिक दशा बिगड़ने से बचाई: पूर्व सैन्य अधिकारी
चंडीगढ़ - प्रथम विश्व युद्ध बेल्जियम में ब्रिटिश फौज के लिये शहीद हुये पंजाब के सिख सैनिकों की स्मृति में बेल्जियम स्थित यिपर्स के इनफ्लेंडर्स फील्ड म्यूजियम और चंडीगढ़ स्थित सिखया सीकर्स द्वारा तीन दिवसीय अखंड पाठ का आयोजन किया जायेगा। खालसा सजना दिवस की 325वी वर्षगांठ के अवसर पर म्यूजियम मैनेजमेंट ने सम्मान और आभार व्यक्त के रुप में 26 से 28 अप्रैल को अपने संग्रहालय परिसर में इस धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन करने की घोषणा की है। इसी के साथ चंडीगढ़ में भी इसी अवधि के दौरान सेक्टर 34 स्थित गुरुद्वारा श्री तेग बहादुर साहिब में भी अखंड पाठ का आयोजन होगा।
बेल्जियम से वर्चुअल माध्यम से जुड़े इनफ्लेंडर्स फील्ड म्यूजियम के एसोसिएट शेर सिंह ने प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुये बताया कि बेल्जियम देश, उन सिख सैनिकों का सदैव आभारी रहेगा जिन्होंनें 1914 से शुरु हुये प्रथम विश्व युद्ध में जर्मन, आस्ट्रिया-हंग्री, बुलगरिया और ओटोमन सम्राज्य की संयुक्त सेंट्रल पावर के आक्रमण का डट कर मुकाबला किया । परिणामस्वरुप बेल्जियम जर्मन सैनिकों के कब्जे से बचा रहा और अंत में बेल्जियम गुट वाले एलाईड देशों (ब्रिटेन, फ्रांस, रुस) की जीत हुई। उन्होंनें बताया कि बैसाखी माह के पावन पर्व पर यह अखंड पाठ बेल्जियम के देशवासियों द्वारा एक श्रृद्धांजलि है। उन्होंनें कहा कि लीपर्स, भारतीय और बेल्जियम के इतिहास का मिलन है और इस रणभूमि में दो बड़े युद्धों में हजारों पंजाबी सैनिक वीर गति को प्राप्त हुये और इनकी बहादुरी के किस्से बेलज्यिम में अमर रहेंगें।
इस अवसर पर मौजूद चंडीमंदिर स्थित वैस्टर्न कमांड के जीओसी-इन-चीफ जनरल जनरल केजे सिंह (रिटायर्ड) ने प्रथम विश्व युद्ध में पंजाबी सैनिकों की महत्वता पर बल देते हुये कहा कि उन्होंनें अपनी सेवा को सर्वोपरि रखते हुये बहादुरी का परिचय दिया और वैश्विक राजनैतिक की दशा बदल दी। महीनों की यात्रा के बाद सात समुंद्र पार कर विदेशी जमीन पर पंजाबियत की शूरवीरता के झंडे गाड़े।
अपने संबोधन में पूर्व सैन्य अधिकारी ब्रिगेडियर जीजे सिंह ने इस पहल की सराहना करने के साथ साथ प्रथम विश्व युद्ध के सैनिकों के प्रति उदासीनता पर अपनी चिंता जताई। उन्होंने बताया कि गत वर्ष संग्रहालय के निदेशक डोमिनिक के साथ ही अमृतसर के निकट सुल्तानविंड का दौरा कर शहीद हुये पंजाबी सैनिकों के परिजनों से मुलाकात की। समाज और सरकारों की इन परिवारों के प्रति उपेक्षा और यहां तक की ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाये गए उनके स्मृति स्मारकों की अनदेखी सैनिकों का अपमान दर्शाती है। वहीं दूसरी ओर इसके विपरीत बेल्जियम में उन सैनिकों की स्मृति में भव्य स्मारक बनाये गये हैं और हर शाम रिट्रीट के साथ सलामी दी जाती है। उन्होंने इस बात को उजागर किया कि इस क्षेत्र में ऐसे हजारों परिवार हैं जिनका सरोकार प्रथम विश्व युद्ध से ही और अब उनकी स्मृति में यादगारी मेले लगने चाहिये।
इस अवसर पर मौजूद सिखया सीकर्स के संस्थापक और पूर्व सैन्य अधिकारी कर्नल परमिंदर सिंह रंधावा ने कहा कि पंजाब के सैनिक जब पहली बार विदेशी जमीं पर उतरे तो उन्हें ‘जैंटलमेंस फ्राम इंडिया’ की संज्ञा दी गई यकिनन ही जर्मन आक्रोश से बचने के लिये एलाईड फोर्सिस की यह आखिरी उम्मीद थी। उस समय यूरोप से मिला यह सम्मान भारत के लिये बढ़े गौरव की बात थी। उनके दादा सुरैन सिंह रंधावा भी इस लड़ाई का हिस्सा थे। सौ वर्ष बाद भी यूरोप के बेल्जियम में मिल रहा सम्मान दोनों देशों को जोड़ने का काम रहा है। उन्होंनें बताया कि 25 वर्ष पूर्व खालसा की त्रेयशताब्दी अवसर पर संग्रहालय द्वारा पंजाबी सैनिकों के सम्मान में आयोजित एक कार्यक्रम का हिस्सा बने थे और बेल्जियम द्वारा मिले प्रेम और सम्मान भाव से काफी प्रभावित रहे। गत वर्ष जब संग्रहालय के निदेशक डोमिनिक भारत आये थे तो यिपर्स की मिट्टी से बने ‘कमिंग वर्ल्ड रिमेम्बर मी’ की थीम के दो रेप्लिका सिखया सीकर्स संस्था को भेंट कर गये थे। इससे पहले, उन्होंने 2006 में तत्कालीन यूटी प्रशासक लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जैकब को चंडीगढ़ में इसी तर्ज पर एक संग्रहालय समर्पित करने के लिए एक पत्र लिखा था, जिसे बेल्जियम द्वारा विधिवत समर्थन दिया जाएगा।
इस अवसर पर ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह काहलों, कर्नल जेएस मुल्तानी, सिख्या सीकर्स के पावन पियूष महाजन (टिमी महाजन) ने भी अपने विचार व्यक्त किये ।