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कोरोना, करूणा और बुद्ध के 6 आर्य सत्य - डा.बासुदेव प्रसाद

Updated on Tuesday, May 25, 2021 16:29 PM IST

कोरोना की महामारी ने हर किसी को परेशान किया है. कोरोना से उबरने के बाद भी प्राणी अवसाद में घिर जाता है और जिंदगी का जंग नही जीत पाता है. कई बार तो ऐसा भी देखा गया कि कोरोना के कुछ मामूली लक्षण दिखने पर कोरोना के पॉजीटिव होने की संभावना में वह आगे की टेस्ट करवाने से हिचकिचाता है, या तो स्वयं आइसोलेशन में चला जाता है या अस्पताल में इलाज के दौरान भाग जाता है.

 

अखबार में ऐसे समाचार आए दिन आ रहे हैं और ऐसे व्यक्ति समाज में कोरोना फैलाने के कारण बन रहे हैं. इसके संक्रमण काल में तनाव और अवसाद का बढना स्वाभाविक है परंतु इसे एक चुनौती के रूप में सबको लेना पङेगा. यह राह बहुत कठिन नही है, लचीला भी नहीं. थोङें अनुशासन के साथ उदार बन कर आप परिस्थितिवश उदार बनें, आप इस अवसादरूपी भंवर से बाहर निकल सकते हैं.

 

सिद्धार्थ बुद्ध के 6 आर्य सत्यों का अनुपालन कर हम इस मानसिक तनाव को दूर भगा सकते हैं. बुद्ध के उपदेशों में पहला आर्य सत्य दुख से जुङा है, इस महामारी में लॉकडाउन के दौरान बेरोजगारी, पीङा, बीमारी और अपने जनों की मौतें हुई हैं. परंतु यह सब जीवन का हिस्सा है. वास्तविकता को स्वीकार करना और उसी में खुशी खोजना ही जीवन है. दूसरे आर्य सत्य में दुख के कारणों को सत्यापित करें.मानसिक उलझन और उदासी का कारण परिजनों के दुख के साथ-साथ हमारी अज्ञानता भी है.कष्ट खतम होने का विश्वास रक्खें.यह विश्वास योग्यता शील और क्षमता से आता है.हर काली रात के बाद सुबह होती है और किताब का पन्ना फङफङाने के बाद ही पलटता है.

 

सकारात्मक और आशावादी सोंच बनाए रखना अवसाद को दूर भगाने का सबसे बङा हथियार है.जिंदगी में उतार-चढाव तो आते-जाते रहते हैं,इसलिए हताश न हों,जीवन अनमोल है,आशा का दीपक जलाए रक्खें.जिंदा रहने से ही रिश्ते बनते हैं.परिवार में किसी जन के संक्रमित होने पर अपना ख्याल करते हुए उनकी सेवा-सुश्रुषा करें, उनसे दूरी जरूर बनाएं,लेकिन अलगाव की स्थिति उत्त्पन्न न होने दें-यही तीसरा आर्य सत्य है.

 

बौद्ध धर्म संसार की सभी वस्तुओं में कार्य-कारण सिद्धांत को मानता है.दुनिया में सभी चीजें एक दूसरे से पारस्परिक ऱूप और गुण से जुङी हैं.मनुष्य एक सामाजिक और विवेकशील प्राणी है.परिवार-पङोसी और देश एक दूसरे पर आश्रित होकर हम सब कर्तव्य और अधिकार से जुङे हैं.विपरित काल में लोगों की अच्छाइयां-बुराइयां उभर कर सामने आती हैं.ऐसे में आप लोगों के साथ सद्व्यहवार करें.यही भावना सबको अवसाद ग्रस्त होने से  बचा सकती है.

 

किसी भय से पङोसी से दूर नहीं हों बल्कि जरूरत पङने पर पङोसी के घर में उनके बुजुर्गों की भी सहायता करें.भगवान बुद्ध मध्यम मार्ग के समर्थक थे,इसलिए बहुत कठोर और लचीला रवैय्या अपनाने से बेहतर है कि आप बीच का मार्ग अपनाएं.इससे आप अपने प्रियजनों के संपर्क में भी रहेंगे और अलगाव भी नहीं महशूस करेंगे.

 

यह आपको अवसादग्रस्त होने से बचाएगा साथ ही परिवार के साथ मिलकर चलने में आपकी सकारात्मकता बढेगी.गौतम बुद्ध ने चौथे आर्य सत्य, अष्टांग मार्ग में सम्यक दृष्टि और सम्यक संकल्प पालने का संदेश दिया है-समानि व आकुति समाना हृदयानि वहः,समानमस्तु वो मनो यथावह सुषहासनि,अर्थात् तुम्हारे मन -हृदय एक हों, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि द्वारा चीजों-घटनाओं को सही नजरिए से देखना भी आपको अवसाद से दूर ले जाएगा.

 

सबके प्रति सहानुभूति रखना बौद्ध धर्म का मूल तत्व है जो दया-परोपकारिता, भय को खतम कर हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है.सर्वे भवन्तु सुखीनः का ध्यान करते हुए सावधानी पूर्वक  अपने अंदर की नैतिकता को बढाना है.  कोरोना और करूणा दोनों सामयिक दैहिक-दैविक और एक दूसरे के लिए पूरक शब्द है,दोनों एक दूसरे का अलंकरण नही,हितैषी प्रेरक है.इसलिए कोरोना महामारी से उपजे अवसाद में करूणा बनाए रक्खें.

 

करूणा न केवल दूसरों के प्रति,बल्कि स्वयं के प्रति भी आवश्यक है.आइसोलेशन में स्वयं के प्रति करूणा आपको बीमारी से उबरने में मददगार तो होगी ही साथ दूसरों के प्रति दिखलाई गई करूणा आपको अपने परिवार और समाज की सेवा के लिए प्रेरित करेगी. करूणा के आवेश में आप आइसोलेशन में भी अवसाद के मकङीजाल में फंसने से बच जाएंगे. सोशल डिसटैंसिंग के समय तो करूणा का विशेष महत्व बन जाता है जब महामारी के डर से सभी एक दूसरे से दूरियां बनाते हैं.ऐसे में करूणा के दो बोल अनमोल बन जाते हैं जो मनोवैज्ञानिक दबाव गढ़ते हैं.

 

यह बुद्ध का पांचवां आर्य सत्य है. बौद्ध धर्म में शील-सदाचार और स्पष्ट परीक्षणको मूलभूत आधार बनाया गया है. शील और शिक्षा में विज्ञान को समाहित करने की विधा और विधि 400 वर्ष ईशा पूर्व की धनवंतरी सिद्धि है. विज्ञान में विश्वास कर आप टीके की उपलब्धता और इलाज में भरोसा करें. प्रेम, दया, करूणा, प्रसन्नता, धैर्य, सौहार्द और दुआ, दवा का ही प्रतिरूप है, जो प्रत्यक्ष और परोक्ष में बीमारी के भय को हर लेता है. विज्ञान में विश्वास आपको खुश और समृद्ध रखेगा. भगवान बुद्ध के उपदेशों में दया-सहानुभूति और करूणा है, जो कोरोना की भयावहता को शतप्रतिशत नही तो 60 प्रतिशत तक कम कर सकता है, यह भगवान बुद्ध का छट्ठा आर्य सत्य है

(लेख में प्रस्तुत विचार लेखक के निजी है। )

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