क्या कभी आपने खामोशी की आवाज सुनी है? किसी जंगल, नदी या हरियाले मैदान के बीच आंखें बंद करके बैठे हैं, जहां सिर्फ हवा की सांय-सांय ही सुनी जा सकती हो। अगर इनमें से कुछ नहीं किया हो तब भी किसी कम भीड़-भाड़ वाली जगह पर गाड़ी के शीशे चढ़ाकर उस शांति का अहसास किया है, जोकि आपके कानों में मौन का ऐसा रस घोलती है कि आप सुकुन की दौलत पा जाते हैं।
दरअसल, आज के समय में हवा, पानी के प्रदूषण की व्यापक चर्चा होती है, लेकिन ध्वनि प्रदूषण को नजरअंदाज कर दिया जाता है। सड़कों पर बेहताशा दौड़ती गाड़ियां हाॅर्न बजाकर जहां आपकी चेतना में चुभती रहती हैं, वहीं धार्मिक स्थलों के आसपास का माहौल भी उस तथाकथित भक्ति संगीत से रुदन करता रहता है जोकि बहुत बार भौंडा सुनाई देता है। अगर इन सब बातों पर ध्यान दें तो हमें पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से दिए गए उस फैसले पर न केवल गौर फरमाना होगा अपितु उसे अमल में लाने के लिए संजीदा भी होना होगा।
दरअसल, धार्मिक स्थलों से जिस शांति और सुकून की उम्मीद की जाती है, आजकल वहां भी शोर का संसार बसने लगा है। व्यवसायिकता की छाया में मंदिरों के संचालक लाउडस्पीकरों के जरिए इतना शोर कर रहे हैं कि इन स्थलों के आसपास रहने वाले लोगों का जीवन नारकीय हो रहा है।
माननीय हाईकोर्ट ने मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा समेत कहीं भी सुबह 6 बजे से पहले लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है वहीं यह भी स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक स्थलों पर बगैर अनुमति के लाउड स्पीकर को बजाना गैरकानूनी होगा। कोर्ट ने संबंधित जिलों में डीसी और एसपी को इसके लिए निर्देशित करते हुए कहा है कि अगर बगैर अनुमति कोई ऐसा करता है तो कार्रवाई न होने पर दोनों अधिकारी इसके जिम्मेदार होंगे। दरअसल, यह मसला नया नहीं है, अलसुबह जोकि 3 बजने के साथ हो जाती है, ज्यादातर स्थानों पर धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर पर धार्मिक आवाजें आनी शुरू हो जाती हैं, इनका प्रयोजन बेशक रुहानी होता है, लेकिन इसकी वजह से तमाम लोगों को जो परेशानी होती है, वह उस प्रयोजन के आगे बौनी साबित होती है। काम की भागदौड़, पढ़ाई का प्रेशर, बीमारी और जनसंख्या घनत्व के बढ़ते जाने से नींद जैसी नेमत कम से कम होती जा रही है, उसमें भी अलसुबह अगर किसी धार्मिक स्थल से कोई तीखी आवाज आपकी नींद में खलल डालती हो तो जिंदगी बेहद बोझिल हो जाती है।
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इसके अलावा कोर्ट ने रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर और म्यूजिक सिस्टम पर पाबंदी लगाई है, वहीं स्कूलों, काॅलेजों आदि की वार्षिक परीक्षाएं शुरू होने से 15 दिन पहले लाउडस्पीकर और इसी तरह का अन्य ध्वनि उपकरण इस्तेमाल करने से रोक दिया है। माननीय कोर्ट ने मोटरसाइकिल का साइलेंसर खराब कर ध्वनिप्रदूषण को अंजाम देने वाले चालकों पर भी कड़ी कार्रवाई को कहा। वास्तव में, किसी को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का इससे खराब तरीका नहीं हो सकता कि उसे किसी ऐसी मोटरसाइकिल के पास रखा जाए, जिसका साइलेंसर हटा दिया गया है। गांव-देहात और शहरों में बगैर हेलमेट ऐसी बाइक दौड़ाते युवाओं को देखना सच में दिमाग को निचोड़ देने वाले क्षण होते हैं। क्योंकि वे बेशक उस कर्कश आवाज को करके भाग जाएं लेकिन आपके कानों में जो भयंकर शोर गूंजता रहता है, वह आपको अव्यवस्थित कर देता है। कोर्ट ने 10 बजे के बाद रिहायशी इलाकों में हाॅर्न बजाने पर भी रोक लगाई है।
माननीय हाईकोर्ट ने इस दौरान एक और अहम विषय पर अपना फैसला सुनाया है। आजकल फिल्मी और एलबम आदि के गानों में अश्लीलता, नशे और हथियारों का महिमामंडन चरम पर है। पंजाबी गानों में यह चलन ऐसी अंधी प्रतियोगिता को जन्म दे चुका है कि दारू, हथियार, महंगी गाड़ियों के प्रदर्शन और महिलाओं के अश्लील डांस के बगैर उनका पूरा होना संभव ही नजर नहीं आता। कोर्ट ने इसे गैंगस्टर कल्चर का नाम देते हुए तीनों राज्यों में किसी भी लाइव शो में इन शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगाई है। अगर ऐसे गीत कहीं बजे और फिर भी कार्रवाई नहीं हुई तो इसके लिए सीधे डीजीपी को जिम्मेदार ठहराया गया है। कोर्ट ने शादी, धार्मिक आयोजनों में हथियारों के ले जाने पर भी प्रतिबंध लगाया है, यह उन मामलों के लगातार बढ़ते जाने के परिणामस्वरूप है, जिनमें शादी-ब्याह में गोली चलने से लोगों के मारे जाने की खबरें आ रही हैं। इसके अलावा कोर्ट ने 12 साल से कम उम्र के बच्चे को ऐसे किसी भी सिनेमा घर में न जाने देने के आदेश दिए हैं, जहां ए सर्टिफिकेट की फिल्म चल रही हो।
जाहिर है, ये सभी फैसले आज के समय की मांग हैं, माननीय और विद्वान न्यायधीशों ने उन सभी बातों को बखूबी समझा है जोकि व्यक्ति के जीवन पर गलत असर डाल रही हैं। शासन और प्रशासन सिर्फ एसी कमरों में बैठने के लिए बना है, उसका काम उन फैसलों को अमल में लागू करवाना है, जोकि न्याय के मंदिरों में बहुत सोच-विचार के बाद लिए जाते हैं। ध्वनि प्रदूषण आज के समय वायु प्रदूषण की भांति ही खतरनाक होता जा रहा है, इसी तरह से अश्लील और बेतुका संगीत भी रोग बन गया है। माननीय कोर्ट के इन फैसलों को व्यवहार में लागू कराने की जिम्मेदारी संबंधित अधिकारियों की है, आशा है वे अपने दायित्य का निर्वाह करेंगे और एक शांत और आदर्श समाज बनाने में योगदान करेंगे। दरअसल मौन रहकर ही ईश्वर की आवाज सुनी जा सकती है।