लोकगाथा के अनुसार एक साहूकार के सात बेटे व एक बेटी थी। साहूकार के सभी पुत्र अपनी बहन जिसका नाम वीरां को बहुत प्यार करते थे। वीरां अपनी शादी के बाद अपना पहले करवा चौथ पर मायके आई तो वीरां ने अपनी भाभियों संग करवा चौथ का व्रत रखा। रात को जब सभी भोजन करने लगे तो भाइयों से अपनी भूखी बहन का हाल देखा न गया।
उन्होंने उसे खाना खाने को बुलाया पर वीरां ने कहा कि जब चांद निकलेगा तो उसे अर्ध्य देने के बाद ही मैं भोजन करूंगी। भाइयों को अपनी बहन को भुखा देख चैन नहीं आया और उन्होंने पहाड़ी के पीछे जाकर आग जला दी और वापस आकर वीरां को छलनी में से दिखाते हुए कहा कि देखो चांद निकल आया है। वीरां की भाभियों ने उसे काफी समझाया पर अपने भाइयों की बात को सच मानकर उसने चंद्रमा समझ कर उसे अघ्र्य दे दिया और भोजन कर लिया। कुछ ही समय बाद उसके पति की बीमारी की खबर उस तक पहुंच गई।
पति की हालत देखकर वह भगवान श्री गणेश से प्रार्थना करते हुए पूछने लगी कि हे भगवान मुझ से ऐसी क्या गलती हुई जो ऐसा कष्ट मेरे पति पर आया है। तब उसे एक पंडित ने बताया कि आप से यह पाप हुआ है जिस वजह से श्री गणेश जी रुष्ट हो गए हैं। यह जानकर वीरां ने पुन: पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से चतुर्थी के व्रत रखने शुरू कर दिए। कठोर तप से श्री गणेश जी वीरां पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को सकुशल कर दिया।