नई दिल्ली - सोपान महोत्सव के तीसरे दिन कलाकारों ने अपनी मनमोहक प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पहले दो दिनों की शानदार सफलता के बाद, त्रिवेणी सभागार में शनिवार को भी दर्शकों ने कई रोमांचक प्रस्तुतियों का आनंद उठाया।
शनिवार शाम सबसे पहले रेखा पांडे ने अपनी सुरीली आवाज में हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन से समां बांधा। उन्होंने रागश्री-विलंबित ख्याल को विलंबित एकताल में प्रस्तुत किया। फिर तीनताल में द्रुत ख्याल-बंदिश 'करन दे रे', की प्रस्तुति पर श्रोताओं की खूब तालियां बटोरी। और, जब उन्होंने तीनताल में बंदिश की ठुमरी 'आज मोरी कलाई' गाया तो दर्शक झूमने को मजबूर थे।
इसके बाद, तुषार गोयल ने तबला वादन से मंच पर अपना अधिकार जमाया। उन्होंने 16 मात्रा की ताल, तीन ताल बजाई, जिसमें उन्होंने विलंबित लय शुरू की और पेशकार बजाया, फिर कायदा और रेला का सधी हुई तैयारी दिखाई। इसके बाद टुकड़ों और चक्करदार तिहाइयों जैसे कंपोजिशन से दर्शकों को आह्लादित किया। इसके बाद साहित्य कला परिषद की युवा गायिका प्रगति पांडे ने सभी को मंत्रमुग्ध कर देने वाला तराना छेड़ा। उन्होंने मंच पर राग यमन में अलाप और तान के माध्यम से अलग-अलग मूड में अपनी गायिकी का सुंदर नमूना पेश किया। तालियों की गडग़ड़ाहट उनकी गायिकी का बेहतरीन जवाब थी।
इसके बाद मंच पर पार्थ मंडल ने कथक प्रस्तुति से सांस्कृतिक समां को एक अलग मुकाम दिया, जहां नृत्य का आनंद ले रही आखों में द्वंद्व था कि वे पार्थ मंडल के पैरों की चपल चाल देखें या अलग-अलग शारीरिक भाव-भंगिमाएं। विभिन्न भाव-भंगिमाओं को जब पैरों का शानदार साथ मिला तो मंच पर एक अलग ही समां बंध गई। पार्थ मंडल ने यहां राग भूपाली में कस्तूरी तिलकम् पर प्रस्तुति दी, फिर तीनताल में पारंपरिक नृत्य का शानदार नमूना पेश किया। उन्होंने पंडित बिंदादीन महाराज जी द्वारा लिखित दादरा पर बेहतरीन नृत्य किया। इसके बाद देविका राजारमन ने भरतनाट्यम की प्रस्तुति से दर्शकों को भक्ति की दुनिया की सैर कराई। उन्होंने दक्षिण भारतीय मंदिर परंपराओं में निहित पारंपरिक मल्लारी से शुरुआत की।
दरअसल, मल्लारी वह विधा है जिसने औपचारिक जुलूसों में मंच पर नर्तकों के आगमन की शुरुआत की। देविका ने भारतरत्न एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी द्वारा लोकप्रिय किए हुए मीरा के भजन, 'बसो मोरे नैनन में' पर अपने नृत्य से भगवान श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की अप्रतिम भक्ति को मंच पर इस तरह जीवंत किया कि पूरा माहौल मीरामय हो गया। अंत में दर्शकों ने मंत्रमुग्ध कर देने वाले तिल्लाना का आनंद लिया, जिसमें पैरों की चपल चाल एवं लुभावनी शारीरिक मुद्राओं से लोगों की नजरें हट नहीं रही थीं। देविका ने आदि ताल में रागम् रागश्री पर आधारित तिल्लाना के माध्यम से भगवान शिव को आदरांजलि देकर मंच पर आध्यात्मिक समां बांध दिया।
मंच पर तीसरे दिन का खास आकर्षण रहा छऊ नृत्य। कुलेश्वर कुमार ठाकुर ने छऊ नृत्य के साथ सांस्कृतिक समां को चरम रूप दिया। उन्होंने मयूरभंज छऊ और अन्य कई शास्त्रीय नृत्य शैली को मिलाकर एक अनूठी शैली का मंच पर प्रदर्शन किया। वह अपने नृत्य कौशल से लोगों को पौराणिक कथाएं सुनाते-समझाते लगते हैं। और जब मंच पर उन्हें अनुभवी नर्तकियों का साथ मिल जाता है तो अगल ही माहौल बनता है। यही कारण है कि वह आज की तारीख में दिल्ली में काफी लोकप्रिय हैं।
लेकिन यह अंत नहीं है। सोपान उत्सव का समापन अभी बाकी है। रविवार को जब चौथे दिन का प्रदर्शन होगा तो हम आपसे कई और शानदार प्रस्तुतियों का वादा करते हैं।