विक्रम संवत के नववर्ष की शुरुआत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है. इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था. इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनकी निर्माण की हुई सृष्टि के मुख्य-मुख्य देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्वों, ऋषि-मुनियों, मनुष्यों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीटाणुओं का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का पूजन किया जाता है.
इस दिन से नया संवत्सर शुरू होता है अतः इस तिथि को नव-संवत्सर भी कहते हैं. संवत्सर अर्थात् बारह महीने का काल विशेष. संवत्सर उसे कहते हैं, जिसमें सभी महीने पूर्णतः निवास करते हो.
संवत्सर क्या है?
भारतीय संवत्सर वैसे तो पांच प्रकार के होते हैं. इनमें से मुख्यतः तीन हैं- सावन, चान्द्र तथा सौर.
सावन : यह 360 दिनों का होता है. संवत्सर का मोटा-सा हिसाब इसी से लगाया जाता है. इसमें एक माह की अवधि पूरे तीस दिन की होती है. चैत्र ही एक ऐसा माह है जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं. इसी मास में उन्हें वास्तविक मधुरस पर्याप्त मात्रा में मिलता है. वैशाख मास, जिसे माधव कहा गया है, में मधुरस का परिणाम मात्र मिलता है.
चान्द्र : यह 354 दिनों का होता है. अधिकतर माह इसी संवत्सर द्वारा जाने जाते हैं. यदि मास वृद्धि हो तो इसमें तेरह मास अन्यथा सामान्यतया बारह मास होते हैं. इसमें अंगरेजी हिसाब से महीनों का विवरण नहीं है बल्कि इसका एक माह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक या कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से पूर्णिमा तक माना जाता है.
इसमें प्रथम माह को अमांत और द्वितीय माह को पूर्णिमांत कहते हैं. दक्षिण भारत में अमांत और पूर्णिमांत माह का ही प्रचलन है. धर्म-कर्म, तीज-त्योहार और लोक-व्यवहार में इस संवत्सर की ही मान्यता अधिक है.
सौर : यह 365 दिनों का माना गया है. यह सूर्य के मेष संक्रांति से आरंभ होकर मेष संक्रांति तक ही चलता है.