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ग़ाज़ा से एक माँ की चिट्ठी: दर्द, मुश्किलों और उम्मीद की अनूठी गाथा

Updated on Tuesday, October 08, 2024 22:35 PM IST

8 अक्टूबर 2024 - “यह कहानी युद्ध के पहले दिन से शुरू नहीं हुई. यह आरम्भ हुई, नौ महीने पहले उस दिन से, जब मुझे मालूम हुआ कि मैं माँ बनने वाली हूँ.” वो नवम्बर 2023 का कोई दिन था, जब ग़ाज़ा में युद्ध आरम्भ हुए लगभग एक महीना हो चुका था.

अला'आ, ग़ाज़ा पट्टी की उन अनुमानित 1 लाख 55 हज़ार गर्भवती महिलाओं व नई माताओं में से एक हैं, जिन्हें पिछले साल 2023 में गोलीबारी के बीच, बमबारी से बचकर भागते हुए, तम्बुओं में, किसी भी प्रकार की चिकित्सा सुविधा, दवाओं या स्वच्छ पानी के बिना अपने बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ा है.

ख़ान यूनिस शहर के एक फ़ील्ड अस्पताल के जिन स्वास्थ्य कर्मियों ने उनका प्रसव करवाने में मदद की थी, उनका धन्यवाद करते हुए उन्होंने एक पत्र में लिखा, “रॉकेट और बमों की आवाज़ मेरी ख़ुशियों पर भारी पड़ रही थी, लेकिन मैंने ठान ली थी कि अपने बच्चे के साथ मैं हर मुश्किल से निपट लूँगी.”

“चाहे कुछ हो जाए, हमें इससे बचना ही है.”


संकटपूर्ण स्थिति
ग़ाज़ा में गर्भवती महिलाओं के लिए स्थिति भयावह है: थकान व भूख से कमज़ोर. वहाँ स्वास्थ्य सेवाओं का नामो-निशान लगभग मिट चुका है. कोई भी अस्पताल पूरी तरह से चालू नहीं है, इससे उनके पास देखभाल और इलाज के लिए बहुत कम विकल्प बचे हैं.

चिकित्सा सुविधाओं पर सैकड़ों हमले हुए हैं, और फ़िलहाल 36 में से केवल 17 अस्पताल ही आंशिक रूप से काम कर रहे हैं.

ईंधन और आवश्यक वस्तुओं की भी गम्भीर कमी है, स्वास्थ्य कर्मी मारे जा रहे हैं या भागने के लिए मजबूर हैं. जो बचे हैं वो ऐसे समय के लिए काफ़ी नहीं हैं, जब ग़ाज़ा की पूरी आबादी चोटों, बीमारियों व रोगों में वृद्धि का सामना कर रही है.

इसमें, 25 से ज़्यादा वर्षों में पहली बार सामने आया पोलियो का मामला भी शामिल है.

 

विस्थापन से उपजे जोखिम
ग़ाज़ा की 5 लाख से अधिक महिलाएँ, प्रसव पूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल, परिवार नियोजन और संक्रमण के उपचार जैसी महत्वपूर्ण सेवाओं से महरूम हैं. इनमें 17,000 से अधिक गर्भवती महिलाएँ, अकाल के कगार पर हैं.

अला'आ ने अपने पत्र में आगे लिखा है, "सात महीने बीते थे कि मुझे अपना घर छोड़कर एक तम्बू में रहने के लिए जाना पड़ा.

मुझे यह सोचकर बहुत रोना आता था कि मेरा बहादुर बच्चा अपने उस कमरे की दीवारें कभी नहीं देख पाएगा, जिसे तैयार करने का सपना मैंने हमेशा देखा था."

लेकिन, उनकी पीड़ा यहीं खत्म नहीं हुई, क्योंकि जल्दी ही उन्हें वहाँ से भी निकाल दिया गया.

अला'आ ने लिखा, "मैं इस अहसास से दिल की गहराई से रो रही थी [कि मुझे] अपने बच्चे को घर से बाहर जन्म देना पड़ेगा. मैं 50 दिन बाद, बमबारी के बीच, आग से बचने के लिए चिल्लाती, रोती हुई भागी. उस पल, मुझे डर लगा कि कहीं मैं अपना बच्चा न खो दूँ.”

वर्तमान में ग़ाज़ा में लगभग 19 लाख लोग विस्थापित हैं, जिनमें से बहुत से लोग साल 2023 में अनगिनत बार, एक जगह से दूसरी जगह भागने के लिए मजबूर हुए हैं.

युद्ध शुरू होने के समय से, गर्भपात, प्रसूति सम्बन्धी जटिलताएँ, जन्म के समय कम वज़न और समय से पहले ज़न्म जैसी समस्याओं की दरें ख़तरनाक रूप से बढ़ी हैं. इनका प्रमुख कारण रहा, तनाव, कुपोषण और मातृत्व देखभाल की कमी.

अला'आ ने, बमबारी से बचकर भागने वाले क्षण को याद करते हुए लिखा है, "हम वहाँ थे, शून्य से शुरू करने को मजबूर - कोई आश्रय नहीं, कोई घर नहीं, यहाँ तक कि कोई भविष्य भी नहीं. हमने दोबारा एक तम्बू बनाया, और एक-दूसरे से एक बार फिर यह वादा किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, हमें जीवित रहना होगा.

 

आशा की किरण
“दो हफ़्ते बाद मुझे थोड़ा दर्द महसूस हुआ...यह प्रसव पीड़ा थी! (मैंने सोचा) “नहीं. अभी बहुत जल्दी है, मैं अपने बच्चे को घर पर जन्म देना चाहती हूँ.”

अला'आ, चार दिनों तक प्रसव पीड़ा जारी रहने पर, UK-Med द्वारा संचालित ख़ान यूनिस के एक फ़ील्ड अस्पताल गईं. यह एक मानवीय गैर-सरकारी संगठन (NGO) है, जिसमें ब्रिटेन एवं यौन व प्रजनन के लिए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी UNFPA द्वारा समर्थित एक विशेष स्वास्थ्य एवं प्रसूति इकाई है.

उन्होंने आगे बताया, "मैं यहाँ जाँच के लिए आई थी और सब कुछ सही नज़र आया. दाई और नर्सें दयालु व स्नेही थीं. मैंने डॉक्टर हैलेन से बात की और उन्होंने मुझे वहीं आकर बच्चे को जन्म देने के लिए प्रोत्साहित किया.''

जब प्रसव का समय आया, तो उन सभी ने सुनिश्चित किया कि अला'आ, सुरक्षित तरीक़े से अपने बच्चे को जन्म दे सकें. “मैं रात 2 बजे सीधे अस्पताल आ गई. सभी दाइयाँ तैयार मिलीं. लेकिन, उन्होंने मुझसे कहा कि प्राकृतिक तरीक़े से जन्म देने में जोखिम हो सकता है.”

UNFPA अस्पताल की प्रसूति इकाई को प्रजनन स्वास्थ्य किट व अन्य आपूर्तियाँ प्रदान करता है. साथ ही, यह सुनिश्चित करता है कि स्वास्थ्यकर्मी प्रसूति से जुड़ी आपात स्थितियों समेत समस्त जटिल परिस्थितियों में व्यापक देखभाल प्रदान कर सकें.

अला’आ और उनका नवजात शिशु मोहम्मद, युद्ध और साफ़ पानी, भोजन एवं सुरक्षा की कमी के बावजूद, अब एक़दम स्वस्थ हैं.

उन्होंने लिखा, "बच्चे को जन्म देने के लिए यहाँ आना उत्कृष्ट फ़ैसला था. मुझे अच्छा लगता है कि इतने दबाव में होने के बावजूद, ये लोग हर समय मुस्कुराते रहते हैं. यह टीम बहुत महान है.”

 

निशाने पर स्वास्थ्य देखभाल
ग़ाज़ा में जारी युद्ध का, महिलाओं और लड़कियों पर प्रभाव चौंका देने वाला है: 5 लाख से अधिक महिलाएँ, प्रसव पूर्व एवं प्रसवोत्तर देखभाल, परिवार नियोजन और संक्रमण के इलाज जैसी महत्वपूर्ण सेवाओं से वंचित हैं; 17,000 से अधिक गर्भवती महिलाएँ भुखमरी की स्थिति में जी रही हैं.

UNFPA और उसके सहयोगी, प्रजनन स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने, जीवन रक्षक दवाएँ, चिकित्सा उपकरण और आपूर्ति वितरित करने तथा आधिकारिक एवं अस्थाई शिविरों में दाइयों व स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों की टीमों को तैनात करके, स्वास्थ्य देखभाल मुहैया करवाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं.

इसके अलावा, किसी भी स्थान पर, माताओं और उनके नवजात शिशुओं को आपातकालीन प्रसूति देखभाल प्रदान करने के लिए फ़ील्ड अस्पतालों में, छह मोबाइल मातृ स्वास्थ्य इकाइयाँ भी स्थापित की गई हैं.

लेकिन युद्धविराम, स्वास्थ्य सेवाओं तक पूर्ण पहुँच और निरन्तर वित्त पोषण के अभाव में, सहायता जारी रखना मुश्किल होता जा रहा है.

अला’आ ने, तमाम कठिनाइयों के बावजूद, उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है.

उन्होंने अस्पताल के कर्मचारियों का आभार व्यक्त करते हुए लिखा है, "मेरे बेटे मोहम्मद की ओर से, आपकी हर मदद के लिए शुक्रिया."

“हम आपके आभारी हैं. मुझे उम्मीद है कि बेहतर हालात में हमारी दोबारा मुलाक़ात होगी.”

 

 

Source : यू एन समाचार

 

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