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जियो और जीने दो: जीवदया ही धर्म है

Updated on Friday, May 30, 2025 19:42 PM IST

शामली, 30 मई 2025 – प्रवचन श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, धरमपुर (शामली) के प्रांगण में आज *श्रुताराधक सन्त क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी गुरुदेव* के पावन सान्निध्य में एक प्रभावशाली धर्मसभा का आयोजन किया गया, जिसमें गुरुदेव ने “जीवदया और भगवान महावीर का ‘जियो और जीने दो’ उपदेश” विषय पर अपना ओजस्वी प्रवचन दिया।

गुरुदेव ने प्रवचन की शुरुआत करते हुए कहा— “संसार में जितनी भी पीड़ा है, उसका मूल कारण एक ही है — हिंसा। और जितनी भी शान्ति है, उसका मूल आधार है — दया। भगवान महावीर स्वामी जी का ‘जियो और जीने दो’ केवल एक नारा नहीं, वरन् समस्त जीवों के कल्याण का महामन्त्र है।”

जीवदया: केवल एक भावना नहीं, धर्म का आधार

गुरुदेव ने कहा कि जैन धर्म में जीवदया को केवल एक नैतिक मूल्य नहीं, अपितु धर्म का प्राण माना गया है। एक-एक जलकण, वायु और अग्नि में अनन्त जीव हैं। अनजाने में भी हिंसा न हो, इसके लिए जैन मुनि नग्न वेश धारण करते हैं ताकि वस्त्र निर्माण की प्रक्रिया में जो हिंसा होती है उससे बचा जा सके एवं जीवदया के उपकरण पिच्छी-कमण्डलु का उपयोग करते हैं।

उन्होंने बताया कि भगवान महावीर स्वामी जी ने 2600 वर्ष पूर्व ही परम्परा अनुसार पर्यावरण, पशु अधिकार और सह-अस्तित्व की शिक्षा दी, जब यह विचार विश्व में कहीं अस्तित्व में भी नहीं थे।

कृषि से लेकर भोजन तक में दया का भाव

गुरुदेव ने आम जन-मानस का आह्वान करते हुए कहा कि वे अपने दैनिक जीवन में दया को आत्मसात् करें —

“आज हम चटपटी थाली के लिए कितनी निर्दोष आत्माओं का बलिदान करते हैं, क्या वह हमें शोभा देता है? अगर एक दिन भी हम संकल्प लें कि एक भी प्राणी को कष्ट नहीं देंगे — वही दिन हमारा सार्थक दिन बन जाएगा।”

अहिंसा ही सर्वधर्म का सार

गुरुदेव ने आगे कहा— “सभी जीवों की आत्मा एक समान ही है — यही सभी धर्मों का सार है ‘अहिंसा’। यदि तुम्हारे आचरण से किसी प्राणी को कष्ट हो, तो वह सही होते हुए भी ठीक नहीं है। और यदि तुम्हारा भोजन से किसी जीव की हिंसा होती है तो वह भी ठीक नहीं। भगवान महावीर स्वामी जी ने कहा था — ‘अहिंसा परमो धर्मः’ — इसे केवल श्लोक न समझें, इसे जीवन का मूलमन्त्र बनाएं।

 संवेदना के जागरण का आह्वान

गुरुदेव ने बच्चों और युवाओं से विशेष रूप से संवाद करते हुए कहा—

“आज दुनिया विज्ञान और तकनीक में दौड़ रही है, लेकिन यदि इस दौड़ में संवेदना गिर गई, तो *यह प्रगति नहीं, पतन है* । संवेदना ही वह दीप है जो आत्मा को जाग्रत करता है, और जीवदया वह लौ है जो हर दिशा में प्रकाश फैलाती है।”

धर्म केवल पूजा नहीं, व्यवहार है

गुरुदेव ने कहा— “धर्म केवल मन्दिर जाकर दीप जलाना नहीं, वरन् एक दीपक को बुझने से बचाना भी धर्म है। यदि आपने किसी पक्षी को दाना डाला, किसी गाय को पानी पिलाया, या किसी घायल जानवर की सेवा की — णमोकार मंत्र सुनाया तो वही आपकी आरती है, वही आपकी पूजा है— जैसा श्री पार्श्व कुमार जी ने किया था।”

 जन-सन्देश

सभा के अन्त में गुरुदेव ने जोर देते हुए कहा— “इस धरती पर हर जीव को जीने का अधिकार है। भगवान महावीर स्वामी जी का उपदेश है — Live and Let Live — ‘जियो और जीने दो’। आइए, हम सब मिलकर इस अमूल्य उपदेश को केवल सुने नहीं, बल्कि जीवन में उतारें।”

सभा में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया और अन्त में सभी ने सर्वजीवों के कल्याण हेतु प्रार्थना की।

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