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प्राचीन कला केन्द्र की 304 वीं मासिक बैठक में सरोद की मधुर तरंगों ने मोहा दर्शकों का मन

Updated on Wednesday, February 12, 2025 10:02 AM IST

प्राचीन कला केन्द्र द्वारा आज यहां मासिक बैठक की 304वीं कड़ी में कोलकाता से आए सरोद वादक कल्याण मुख़र्जी द्वारा भावपूर्ण प्रस्तुति पेश की गई । इस कार्यक्रम का आयोजन केन्द्र के एम.एल.कौसर सभागार में सायं 6ः00 बजे से किया गया । कल्याण के साथ तबला पर जर्मनी से आये तबला वादक फ्लोरियन शियर्ट्ज ने बखूबी साथ देकर कार्यक्रम को चार चाँद लगा दिए।

कल्याण मुखर्जी का जन्म कलकत्ता, में एक ऐसे परिवार में हुआ था जो लंबे समय से पारंपरिक कला और संस्कृति से जुड़ा हुआ था। उनके पिता अजय कुमार मुखर्जी एक वायलिन वादक और दिवंगत सरोद वादक उस्ताद बहादुर खान के शिष्य थे। कल्याण ने बचपन में लखनऊ घराने की परंपरा में तबला सीखना शुरू किया, इससे पहले कि उन्होंने सचिन पाल के साथ सरोद सीखना शुरू किया। बाद में कल्याण ने सरोद वादक उस्ताद बहादुर खान के कुशल संरक्षण में सरोद वादन की शिक्षा प्राप्त की।

इसके उपरांत कल्याण ने पंडित अजय सिन्हा रॉय के मार्गदर्शन में अपनी संगीत प्रतिभा को निखारना जारी रखा। कल्याण अपने शानदार प्रदर्शन , प्रतिभा, ऊर्जा और संगीत के प्रति गहन भावनात्मक दृष्टिकोण के कारण संगीत जगत में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। उन्होंने भारत और विदेशों में कई प्रतिष्ठित संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किए हैं।


दूसरी ओर तबला वादक कलात्मक पृष्ठभूमि से संबंधित फ्लोरियन शियर्ट्ज के माता-पिता ललित कला के क्षेत्र में सक्रिय हैं। उन्होंने सात साल की उम्र में पियानो की शिक्षा प्राप्त की और चौदह साल की उम्र में उन्होंने ड्रम सीखना शुरू कर दिया। त्रिलोक गुर्टू को देखकर वे तबले की ओर आकर्षित हुए, जिन्होंने एक संगीत कार्यक्रम के बाद उनके लिए एक रचना ("धा ते ते धा ते धा धा ते धा ते धा गे तू ना का ता") लिखी थी। ध्वनि की दुनिया और तबला बजाने की तकनीक के इस पहले मार्मिक अनुभव ने फ्लोरियन को तबला बजाने की शिक्षा लेने के लिए प्रेरित किया।

फ्लोरियन ने तबला वादन की शिक्षा प्राप्त करने के लिए उदय मजूमदार के शिष्यत्व में तबला वादन सीखना शुरू किया । इसके अलावा उन्होंने तबला और भारतीय शास्त्रीय संगीत की भी शिक्षा प्राप्त की और कोलकाता में पंडित सुमंत्र गुहा के साथ पारंपरिक गुरु-शिष्य परंपरा पद्धति के माध्यम से तबला वादन की शिक्षा प्राप्त की । इसके बाद एक स्वतंत्र संगीतकार के रूप में काम करना शुरू किया। इन्होने भारत में विभिन्न कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति से दर्शकों की तालियां बटोरी हैं।

आज के कार्यक्रम की शुरूआत इन्होंने राग झिंझोटी से की जिसमें पारम्परिक आलाप के द्वारा राग के भावपक्ष को प्रस्तुत किया गया । इसके उपरांत तीन ताल में विलम्बित गत पेश की गई ।कल्याण के सिलसिलेवार बढ़त द्वारा अपनी विशेष शैली का निर्वाह करते हुए दर्शकों की खूब तालियां बटोरी । इनके सरोद वादन में विशेष तौर से तानें,तिहाईयां और विभिन्न लयकारियों से सजी इस प्रस्तुति में मध्य लय तीन ताल में भी कुछ रचनाएं पेश की गई ।

झाले के बाद एक खूबसूरत धुन से कार्यक्रम का समापन किया गया । कार्यक्रम में जर्मनी के तबला वादक फ्लोरियन की सधी हुई संगत ने कार्यक्रम को चार चाँद लगा दिए।
कार्यक्रम के अंत में केन्द्र के सचिव कौसर ने कलाकारों को उतरीया और मोमेंटो देकर सम्मानित किया ।

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