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क्या है नवरात्रों का वैज्ञानिक आधार - मदन गुप्ता सपाटू

Updated on Wednesday, September 24, 2014 15:56 PM IST

चंडीगढ़ - 25 सितंबर गुरुवार से आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में नवरात्र आरंभ हो रहे हैं जो 3 अक्तूबर तक रहेंगे। नवरात्र के नौ दिनों में तीन देवियों - महाकाली, महालक्ष्मी तथा महा सरस्वती एवं दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। 2 अक्तूबर को दुर्गाष्टमी होगी जिसमें कन्या पूजन तथा सरस्वती पूजन किया जाता है। अगले दिन महानवमी है। विजया दशमी का पर्व 3 अक्तूबर को होगा जिसमें अस्त्र-शस्त्र पूजन किया जाएगा और सायंकाल बुराई पर अच्छाई के प्रतीक स्वरुप रावण का दहन होगा। पंचांगानुसार दशमी तिथि 3 तारीख की को 10 बजे आरंभ हो़ रही है अतः  दशहरा 3 अक्तूबर को ही मनाया जाएगा।

जबकि देश के कुछ भागों में दशहरा 4 को मनाया जा रहा है। दशहरे से एक दिन पूर्व 2 अक्तूबर को शुक्र अस्त हो रहा है और 27 नवंबर को उदय होगा जिसके कारण 2014 में अक्तूबर -नवंबर के महीने में विवाह के मुहूर्त नहीं निकलेंगे।

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प्रकृति और नवरात्र

भारत में हर पर्व ऋतु, इतिहास, भूगोल, आकाशीय ग्रह एवं नक्षत्र परिवर्तन, विज्ञान, संस्कृति व परंपरा आदि से जुड़ा हुआ है। नवरात्र वस्तुतः दो ऋतुओं का संगम है जब 6 महीने बाद ऋतु परिवर्तन होता है। छः मौसम में गर्मी व सर्दी ही मुख्य रुप से मानव जीवन को प्रभावित करते हैं। सर्दी के समापन और गर्मी के आगमन पर वासंत नवरात्र भारत में मनाए जाते हैं।

शरद ऋतु के आगमन पर शरद् नवरात्र मनाए जाते हैं।  

मां के किस रुप की होगी प्रथम नवरात्र पर पूजा ?

प्रथम दिन, मां के पहले स्वरुप में पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रुप में विराजमान शैलपुत्री की आराधना की जाएगी। इसी दिन घट स्थापना प्रातः काल की जाती है और जौ बीजी जाती है जिसे दशमी पर सुख, संपन्नता, समृद्धि के प्रतीक हरियाली को पूरे घर में रखा जाता है और एक दूसरे में बांटा जाता है।

 

विशेष मुहूर्त

25 सितंबर, वीरवार को घट या कलश स्थापन का मुहूर्त द्विस्वभाव कन्या राशि में होगा।

 

शुभ समय - प्रातः 6.15 से 7.58 तक

अभिजीत मुहूर्त- प्रातः 11.50 से दोपहर 12.38 तक

लाभ का चैघडि़या- दोपहर 12.13 से 13.42 तक

अमृत चैघडि़या- दोपहर 13.42 से 15.12 तक

शुभ चैघडि़या - सायं 16.41 से 18.11 तक

 

कैसे करें घट स्थापना  ?

प्रातःकाल स्नान करें, घर के स्वच्छ स्थान पर मिट्टी से वेदी बनाएं। वेदी में जौ और गेहूं दोनों बीज दें। एक मिट्टी या किसी धातु के कलश पर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। कलश पर मौली लपेटें। फर्श पर अष्टदल कमल बनाएं। उस पर कलश स्थापित करें। कलश में गंगा जल, चंदन, दूर्वा, पंचामृत, सुपारी, साबुत हल्दी, कुशा, रोली, तिल, चांदी डालें। कलश के मुंह पर 5 या 7 आम के पत्ते रखें। उस पर चावल या जौ से भरा कोई पात्र रख दें। एक पानी वाले नारियल पर लाल चुनरी या वस्त्र बांध कर लकड़ी की चैकी या मिट्टी की बेदी पर स्थापित कर दें। बहुत आवश्यक है नारियल को ठीक दिशा में रखना। इसका मुख सदा अपनी ओर अर्थात साधक की ओर होना चाहिए। नारियल का मुख उसे कहते हैं जिस तरफ वह टहनी से जुड़ा होता है। यह गलती कई बार अज्ञानतावश कई सुयोग्य कर्मकांडी भी कर जाते हैं परंतु आप इसे शास्त्र सम्मत विधि अनुसार ही करें। और पूजा करते समय आप अपना मुंह सूर्योदय की ओर रखें। इसके बाद गणेश जी का पूजन करें। वेदी पर लाल या पीला कपड़ा बिछा कर देवी की प्रतिमा या चित्र रखें। आसन पर बैठ कर तीन बार आचमन करें । हाथ में चावल व पुष्प लेकर माता का ध्यान करें और मूर्ति या चित्र पर समर्पित करें। इसके अलावा दूध, शक्कर, पंचामृत, वस्त्र, माला, नैवेद्य, पान का पत्ता, आदि चढ़ाएं। देवी की आरती करके प्रसाद बांटें और फलाहार करें।

 

जौ या खेतरी बीजना

इसी समय मिटटी के गमले या मिटटी की बेदी पर जौ बीज कर , आम के पत्तों से ढंक दे, तीसरे दिन अंकुर निकल आएंगे। जौ नौ दिनों में बड़ी तेजी से बढ़ते हैं और इसकी हरियाली परिवार में धन धन्य, सुख स्मृति का प्रतीक है ताकि संपूर्ण वर्श हमारा जीवन हरा भरा रहे।

 

अख्ंड ज्योति एवं पाठ

यदि संभव हो और साम्र्थय भी हो तो देसी घी का अखंड दीपक जलाएं। इसके आस पास एक चिमनी रख दें ताकि बुझ न पाए। दुर्गा सप्तश्ी का पाठ करें।

 

व्रत

पूरे नौ दिन अथवा सप्तमी, अष्टमी या नवमी पर निराहार उपवास रखा जा सकता है। इस मध्य केवल फलाहार भी किया जा सकता है।

 

नवरात्र की समय सारणी और संबंधित परिधान

नवरात्र पर नौ दिन किस रंग के वस्त्र धारण करें ताकि आप के शरीर में रंगों और तरंगों से सफूर्ति बनी रहे? महिलाएं संबंधित रंग की चुन्नी और पुरुष रुमाल सिर पर रख सकते हैं।

 

25 सितंबर - वीरवार- प्रतिपदा- पीले वस्त्र पहन कर करें प्रकृति रुपा शैलपुत्री की आराधना। प्रतिपदा - दोपहर 1.22 तक। घट स्थापना 1.22 तक।

26 सितंबर- शुक्रवार -द्वितीया- हरे परिधान में करें सृष्टि रुपा ब्रहमचारिणी की पूजा । लाभ व अमृत का चैघडि़या 8 से 10.30 तक, दोपहर 12 से 1.30 तक

27 सितंबर - शनिवार- तृतीया- ग्रे, नीला वस्त्र पहनें और पूजें मां चंद्रघंटा को। शुभ चैघडि़या- 8 से 9 तक, दोपहर 2 से 5 बजे तक। सायंकाल- 6.30 से 8 तक।

28 सितंबर- रविवार- चतुर्थी- नारंगी, केसरी, वासंती ड्रेस पहन कर स्मरण करें मां कूष्मांडा का। लाभ व अमृत का चैघडि़या- 9 से 12.30 तक। दोपहर शुभ का चैघडि़या- 2 से 3.30 तक।, सायंकाल अमृत का चैघडि़या-6.30 से 9.25 तक

29 सितंबर- सोमवार -पंचमी- सफेद , क्रीम वस्त्र पहन कर मातृरुपा स्कंदमाता की करें आराधना। शुभ का चैघडि़या- 9 से 10.30 तक। सायं 3.20 से 6.20 तक।

30 सितंबर- मंगलवार- षष्ठी- लाल, केसरी रंग का परिधान शुभ रहेगा तुश्टि रुपा मां कात्ययायनी की पूजा के लिए।

पहली अक्तूबर- बुधवार -सप्तमी- हरा,नीला, आस्मानी पहनें मां काल रात्रि की आराधना हेतु। अमृत का चैघडि़या-  प्रातः 6.30 से 9.30 तक दोपहर 10.30  से 12 तक।  लाभ का चैघडि़या- 5 से 6.20 तक।

दो अक्तूबर- वीरवार- दुर्गा अष्टमी- लाल, पीला ,गुलाबी होगा षुभ मां महा गौरी के पूजन में। दोपहर 12 बजे तक। शुभ का चैघडि़या - प्रातः 6.30 से 8 तक। महानवमी पूजा -  अमृत का चैघडि़या -सायं 6.20 से 7.50 तक। लाभ का चैघडि़या- मध्य रात्रि- 12.20 से 1.31 तक।

तीन अक्तूबर - शुक्रवार- नवमी- लाल ,बैंगनी, कासनी रंग के वस्त्र पहनें और करें लक्ष्मी रुपा सिद्धिदात्री मैया की। इस दिन भद्रा नहीं है। दुर्गा नवमी प्रातः 10 तक रहेगी। अमृत का चैघडि़या- 8 से 10 बजे तक। शमी पूजा- दोपहर 12 से 1.30 तक।

अपराजिता पूजा-  लाभ का चैघडि़या -रात्रि 9.20 से 10.40 तक ।

 

विशेष: तीन अक्तूबर को नवमी प्रातः 10 बजे समाप्त हो जाएगी और दशमी आरंभ होकर चार अक्तूबर शनिवार की प्रातः 7.25 तक रहेगी अतः विजय दशमी 3 अक्तूबर को ही मनाई जाएगी।

 

मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिषविद्, 196- सैक्टर 20ए चंडीगढ़. मो- 98156 19620, 0172- 65 19620, 2702790

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