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पर्यावरण के भी अनुकूल नहीं है बीफ खाना: यूनाइटेड नेशंस विशेषज्ञ

Updated on Friday, October 16, 2015 11:25 AM IST

यूनाइटेड नेशन्स एनवायरमेंट प्रोग्राम ने बीफ को पर्यावरणीय रूप से हानिकारक मांस बताया है। एक ग्राम बीफ को बनाने के लिए भारी उर्जा लगती है। औसतन हर हैंमबर्गर के कारण पर्यावरण में तीन किलो कार्बन का उत्सर्जन होता है। आज पृथ्वी को बचाना उपभोग से जुड़ा है और मांस का उत्पादन दुर्भाग्यवश बेहद ज्यादा ऊर्जा खपत वाला काम है।

संयुक्त राष्‍ट्र की रोम स्थित संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन यानी एफएओ ने कहा कि आम तौर पर मांस खाना और विशेष तौर पर बीफ खाना वैश्विक पर्यावरण के लिए सबसे ज्यादा प्रतिकूल हैं। यह बात हैरान करने वाली हो सकती है लेकिन वैश्विक तौर पर बीफ उत्पादन जलवायु परिवर्तन के प्रमुख दोषियों में से एक है। कुछ का तो यह भी कहना है कि मांस उत्पादन उद्योग में बीफ शैतान है। हालांकि, यह बात किसी भी समाज में उचित नहीं ठहराई जा सकती कि बीफ खाने के संदेह के आधार पर किसी व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या कर दी जाए।

विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि बीफ छोड़ने से पृथ्वी पर वैश्विक कार्बन फुटप्रिंट कम होगा। यह कमी कारों का इस्तेमाल छोड़ने से कार्बन अंश में आने वाली कमी से कहीं ज्यादा होगी। इसलिए अगर अांकड़ों पर गौर किया जाए तो खतरनाक गैसों के उत्‍सर्जन के जरिये ग्लोबल वार्मिंग में जितना योगदान ट्रांसपोर्ट सेक्‍टर का है, उससे अधिक मांस उत्‍पाद का है। एफएओ के अनुसार, वैश्विक स्‍तर पर ग्रीन हाउस गैसों के 18 फीसदी उत्‍सर्जन के लिए  पशुधन क्षेत्र जिम्‍मेदार है जबकि इसमें ट्रांसपोर्ट सेक्‍टर की हिस्‍सेदारी 15 फीसदी है। यही वजह है कि पर्यावरण प्रेमी मीट उद्योग और मांसाहार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। 

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