दिल्ली - जिस तरह से सर्दियोँ के मौसम में वायु प्रदूषण पर चर्चा की जाती है उस तरह की डिबेट गर्मियोँ के दिनोँ में नहीँ होती है, खासतौर से गर्म इलाकोँ में। पिछ्ले कुछ वर्षोँ में सर्दियोँ के दिनोँ में धुंध बढने और तापमान में गिरावट के साथ वायु प्रदूषण के स्तर में काफी बढोत्तरी देखी जाती है, जिसके चलते इस पर काफी चर्चा होती है।
गाज़ियाबाद में, गर्मी बढने के बावजूद पूरे अप्रैल महीने में प्रदूषण का स्तर काफी ऊपर रहा है। उदाहरण के तौर पर, पर्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 स्तर पिछ्ले दिनोँ 327 रेकॉर्ड किया गया है, जो कि स्वीकार्य स्तर से काफी ज्यादा है।
कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, गाजियाबाद के पल्मनोलॉजी कंसल्टेंट, डॉ. ज्ञान भारती कहते हैं कहते हैं, “इन दिनोँ भी शहर की हवा अच्छी क्वालिटी का नहीं है, जिसके चलते अस्थमा के मरीजोँ को परेशानी का समना करना पडता है। हमारे पास हर हफ्ते ऐसे मरीज आ रहे हैं जिनमेँ अस्थमा के लक्षण होते हैं।“
कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, गाजियाबाद के पल्मनोलॉजी कंसल्टेंट, डॉ. ज्ञान भारती कहते हैं “हालांकि गर्मी के दिनोँ में प्रदूषण के विषय में कोई खास चर्चा नहीं होती, लेकिन गर्मियोँ का सीजन काफी लम्बा होने के कारण इस मौसम का प्रदूषण भी लम्बे समय तक लोगोँ पर असर डालता हैऔर हवा का टॉक्सिक अस्थमा मरीजोँ को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। गर्मियोँ के दिन भी काफी लम्बे होते हैं, ऐसे में मानवीय क्रियाकलाप और गाडियोँ की आवाजाही भी इन दिनोँ ज्यादा होती है। ऐसे में प्रदूषण भी इन दिनोँ अधिक होता है।“
रिसर्च पहले भी बताते रहे हैं और अब भी बता रहे हैं कि बुजुर्गोँ को ट्रैफिक का प्रदूषण सबसे अधिक प्रभावित करता है और लम्बे समय तक इसके सम्पर्क में रहने से अस्थमा की वजह से हॉस्पिटल में भर्ती होने का खतरा भी काफी बढ जाता है। अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिसॉर्डर (सीओपीडी) मरीजोँ को वायु प्रदूषण की चपेट में आने का खतरा सबसे अधिक रहता है।
बच्चोँ के मामले में भी यही बात लागू होती है, जिनका रेस्पिरेटरी सिस्टम अभी विकसित हो रहा होता है, जिसके चलते उन पर प्रदूषण से प्रभावित होने का खतरा ज्यादा रहता है। चूंकि बच्चे, वयस्क लोगोँ की तुलना में अधिक सक्रिय होते हैं, और बच्चोँ के फेफडे किशोरावस्था में पहुंचने तक विकसित होते रहते हैं, ऐसे में उनके फेफडोँ में प्रदूषित वायु का असर भी अधिक होता है। प्रदूषण को छानकर हानिकारक तत्वोँ को बाहर छोडने के मामले में भी बच्चोँ की क्षमता वयस्कोँ के मुकाबले अलग होती है। साथ ही, बच्चोँ की श्वांस नली वयस्कोँ के मुकाबले अधिक प्रवेश के योग्य होती है। रेस्पिरेटरी वायरस और प्रदूषकोँ के खिलाफ एपिथेलियम पहला डिफेंस होता है।
कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, गाजियाबाद के पल्मनोलॉजी कंसल्टेंट, डॉ. ज्ञान भारती कहते हैं , "गर्मियोँ के सीजन में अस्थमा क्यूँ कर सकता है गम्भीर रूप से प्रभावित? “ऊपर बताए गए कारणोँ के अलावा, गर्मी और उमस खुद अपने आप में अस्थमा के ट्रिगर होते हैं। गर्मी के दिनोँ में एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर और गाडियोँ का इस्तेमाल अधिक होता है इसलिए इन दिनोँ ओज़ोन गैस का स्तर भी काफी ज्यादा होता है, जो कि फेफडोँ को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है। गर्मी के दिनोँ की एक अन्य खासियत आंधी, जो अधिक एलर्जी का कारण बनती है और अस्थमा के मरीजोँ की हालत खराब करने में ट्रिगर का काम करती है। वायु प्रदूषण के साथ-साथ, ये सारे कारक मिलकर अशमा मरीज की तबियत बिगाड देते हैं।“
गाज़ियाबाद के अस्थमा मरीजोँ को गर्मियोँ की एलर्जी और वायु प्रदूषण के असर से बचाव के लिए कुछ खास उपाय करने की जरूरत है:
• अगर प्रदूषण का स्तर 200 mcg/m3से अधिक होता है तो बच्चोँ, अस्थमा के मरीजोँ और बुजुर्गोँ को बाहर नही निकलना चाहिए।
• लोगोँ को बाहर की हवा में प्रदूषण के स्तर की जांच करते रहना चाहिए और यदि हवा में प्रदूषण अधिम है हो तो बचाव के लिए अच्छी क्वालिटी का मास्क पहनना चाहिए।
• घर के भीतर की हवा को भी स्वच्छ रखना बेहद जरूरी होता है।
• आंधी-तूफान आने पर बाहर निकलने से बचना चाहिए।
• अधिक समय तक सूरज की रोशनी के सम्पर्क में रहने से भी बचना चाहिए, क्योंकि दिन के समय की धूप ओज़ोन गैस बनाती है।
• अगर सम्भव हो तो स्विमिंग ज्वाइन कर लेँ। श्वसन तंत्र की क्षमता बढाने के लिए यह एक बेहतरीन व्यायाम है।
• बच्चोँ को गर्मी के दिनोँ में अधिक से अधिक पानी पीने के लिए प्रोत्साहित करेँ। पानी से शरीर में नमी बनी रहती है और इससे हमारा सिस्टम प्रदूषक तत्वोँ को बाहर निकालता रहता है।
• अपने आहार में एंटीऑक्सिडेंट वाली चीजेँ जैसे कि फल व सब्जियाँ अधिक शामिल करेँ। ये शरीर में विटामिंस की मात्रा बढाती हैं, जिसके चलते हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है।